आब सा..
तेरी बातों में छिपा नशा शराब सा
तेरा हुस्न जैसे कोई खिला गुलाब सा
मेरे हाथों से लगकर कुछ छलक गया
तौहीन हुईं मद की,लगा खराब सा
महफ़िल में तो कितने नाज़नीन थे
लेकिन दिखा नहीं हमें तेरे शबाब सा
मेरा पी कर झूमना तुम्हें अखरता था
हमने पहली बार देखा तेरा इताब' सा (गुस्सा )
कितना अरसा हुआ तुमसे मुझे मिले
"उड़ता" तेरा आना हुआ महताब सा
स्वरचित मौलिक रचना
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
झज्जर - 124103 (हरियाणा )
0 टिप्पणियाँ