कवयित्री गीता पाण्डेय जी द्वारा रचना “बेटियों पर गीत"

दिनांक-11/10/2020
दिन-रविवार
विषय-बेटियों पर गीत
प्रकृति-स्वरचित


बेटियाँ ही होती हैं, घर का श्रृंगार। 
इनसे पल्लवित होता है, घर-द्वार।

ये घर में चहचहाती हुई है गौरैया।
खुश देखना चाहती है बाप,भैया।

माँ-बाप के दर्द को, समझती है।
फिर भी दूसरों से, नहीं कहती है।

कष्ट सहकर चाहती, रहें वे प्रसन्न।
सदा माँ-बाप रहें,खुशी के आसन्न। 

भाई को राखी बाँध, देती है, दूआ।
खुशी ही खुशी,दुख हो जाये धूहाँ।

गरीबी में भी  हौसला होती भरपूर।
कभी दिखाती नहीं, मैं  हूँ मजबूर।

कामयाबी का बजाती है, वह डंका। 
ठान लें,तो काम में कोई नहीं शंका। 

पढाई, प्रतियोगिता, या वो हो खेल।
लड़कियाॅ तो, अब चलाने लगी रेल।

अंतरिक्ष में भी, वे भर रही है उड़ान। 
पायलट बनकर,चला रही है विमान।

आईएएस, आईपीएस भी है फतह।
बेटियाॅ तो कामयाबी में रही है सतह।

बेटा-बेटी में,नहीं ही चाहिए भिन्नता।
इससे आती ,जीवन में बड़ी खिन्नता।

बेटा से भी बढ़कर,बेटी को दे मौका।
बेटी,माँ-बाप को देती नहीं है धोखा।  

यही दुर्गा, लक्ष्मी,शक्ति में माँ काली।
सरस्वती भी यही,ज्ञान की है थाली।

स्वरचित गीत-
गीता पाण्डेय, रायबरेली, उ0प्र0

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