प्रकाश कुमार मधुबनी'चंदन'द्वारा विषय सतर्क भारत समृद्ध भारत पर खूबसूरत रचना#

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प्रतियोगिता हेतु

सतर्क भारत समृद्ध भारत

स्वरचित रचना
अपने ही घर में कैद हो गए ये भूलना नहीं।
दाने दाने को मोहताज हो गए ये भूलना नहीं।।
वक्त बिता है तो किंतु जख्म हरे अब भी है।
भूल से भी इन जख्मों को अभी कुरेदना नहीं।। 

सतर्कता ही बचाव है और सतर्क रहना होगा।
 वतन को बचाने को फिर तर्क करना होगा।।
 कैसे रोजी रोटी है छीन गया ये भूलना नहीं।
मन की दूरी से तन की दूरी भली ये भूलना नहीं।।

यू तो दुनियाँ चाहेंगी ही की हम भी भूल ही जाए।
अपने हाथों ही से अपनी बगियाँ को उजाड़ जाए।।
चंद पल के खुशियों के लिए ये गलती करना नहीं।
पैरों तले रौंद दो कलियों को यू मशगूल होना नहीं।।

समय बदलेगा और जख्म फिर से भर जायेंगें।
अपना आपा खोना मत ये वक्त भी गुजर जाएंगे।।
किन्तु समय गुजरने से पहले हौसला खोना नहीं।
आँशु कमोजोर बनाता है कायर बनके रोना नहीं।।

सतर्क रहो दूसरों से अभी हाथ ना मिलाओ।
स्वयं भी हाथ धो औरों को भी धुलवाओ
अपने आँख पर पर्दा पडने देना नहीं।
भूल से भी अपना अस्तित्व खोना नहीं।।

प्रकाश कुमार मधुबनी"चंदन"#

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