कवयित्री गीता पाण्डेय जी द्वारा रचना ‘शीर्षक- बिरसा मुंडा'

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    शीर्षक- बिरसा मुंडा
15 नवम्बर 1875 दिन बृहस्पतिवार।
झारखंड राज्य में बिरसा का अवतार।

माता  करमी  हाटू  पिता  सुगमा  मुन्डा।
अंग्रेजों का राज्य था चारों तरफ थे गुंडा।

अथि॑क तंगी में रहते थे ये मामा के गांव।
उनकी डांट फटकार अच्छी लगी न छावं।

ये जल्दी वोट आए माता पिता के पास।
आकर यहां फिर शिक्षा की जगी आस।

मिशनरी स्कूल में पढ़ते तो जाने दासता।
इससे  छुटकारा  का  ढूंढने  लगे रास्ता।

मुन्डाजनो के पीड़ादायी दृश्यो को देखा।
अंग्रेजों से लडने को खींची लक्ष्मण रेखा।

ये सब घुम्मकड़ जीवन यापन करते थे।
घूम  घूम  कर  लोगो  के दुःख भरते थे।

पीड़ितों की सेवा करते थे बिरसा सीना तान।
लोगों ने फिर सज्ञां  दिया इनको तो भगवान।

ब्रिटिश शासन के खिलाफ लगाया था नारा।
रानी का शासन खत्म सम्रराज हो हमारा।

फिरंगियों को खदेड़ने की मन में ठान लिया।
शासकों  की  हैवानियत  ने   परेशान किया।

लगान माफी के लिए इन्होंने मोर्चा खोला।
कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने को बोला।

तीरों से आक्रमण कर थानों में आग लगाए।
तीर कमान गोलियों का सामना कर पाए।

बिरसा  के  बिद्रोह  से  अंग्रेज  घबराए थे।
विस्वासघात से रांची जेल में डाल पाए थे।

जन्म भूमि  स्वतंत्रता  लक्ष्य  अधूरा  रहा।
जो ज्योति जलाई उसका संघर्ष पूरा रहा।

9 जून 1900 ई0 को देहावसान जेल में।
जहर दिया गया इनको धोखे से खेल में।

गीता आह्वान करती है फिर से आवो जहान।
शत - शत  नमन  करती  तू  है  बड़ा महान।

                     गीता पांडेय
                  रायबरेली उ.प्र.

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