बदलाव मंच को नमन
शीर्षक -मेहंदी पिया के नाम की
बचपन में मैं थी बड़ी बावरी
घर-आँगन में उछला करती
बन हिरणी मैं चौकड़ी भरती
वन-उपवन बागानों में।
बचपन बीता हुई जवान
सब कहते करो इसका ब्याह
मैं हो जाती बड़ी उदास
नहीं छोड़ना था माँ का साथ।
लड़कों की तस्वीरें जब आईं
एक थी मेरे मन को भायी
बजने लगी दिल में शहनाई
होने वाली थी मैं भी पराई।
लगी जब मेरे हाथों में
मेहंदी पिया के नाम की
मीरा समान हुई दीवानी
सुध न रही किसी काम की।
प्रेम की पीर समझ तब आई
प्रिय से सही न जाए जुदाई
देख-देख मेहंदी का रंग
मुखड़ा हो गया लाल
जैसे छिड़का हो किसी ने
मेरे चेहरे पर ग़ुलाल।
विधाता की लीला समझ तब आई
लड़की होती नहीं पराई
मिल गया एक सच्चा साथी
जिसमें थी अनेकों अच्छाई
मेरे चेहरे पर जब भी छाई उदासी
उसने मेरी राह पर खुशियाँ बिछाई।
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