कवि डॉ. राजेश कुमार जैन द्वारा 'आज़ाद नज़्म' विषय पर रचना

सादर समीक्षार्थ
आज़ाद नज़्म


 हमने तुम्हें अपनी, जिंदगी माना था 
जहाँ भर का दर्द, भी तो उठाया था
 तुम तो दिल्लगी करते रहे, हमीं से
 हम रोते रहे, तुम मुस्कुराते रहे ..।।

तन्हाइयों से दिल, हम तो लगाते रहे
तुम तो हमें यूँ ही, बस जलाते रहे
अमीरी की शान भी, दिखाते रहे
 खुद पर ही तो बस, गुमान करते रहे..।।

अच्छा किया तुमने, किनारा कर लिया
 हकीकत का मुझे, आईना दिखा दिया
मेरी आँखों पर पड़ा, पर्दा हटा दिया
प्रीत का वह दीपक, तुमने बुझा दिया..।।

 गुजार रहा था, तुम्हारे ख्वाबों में दिन
 भ्रम जाल से मुझे, बाहर निकाल दिया
 खुश रहो तुम सदा ही, इस जहाँ में
खुदा से इबादत, मैं ये ही करता हूँ..।।


 डॉ. राजेश कुमार जैन
 श्रीनगर गढ़वाल 
उत्तराखंड

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