कवि भास्कर सिंह माणिक कोंच द्वारा 'चाँद' विषय पर रचना

मंच को नमन
मुक्तक

चांद  का  चांद  करे  दर्शन
अमावस  का  कर दे मर्दन
करता काल भी अभिनंदन 
देख  श्रृंगार  का  आकर्षन
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आग का नाम लेने से 
दीप न जलता।
बिना श्रम के कोई भी 
पत्थर न ढलता।
प्रिय भाषण से परिवर्तन 
होगा कैसे ।
माणिक सच्चाई को तूं 
क्यों न समझता।
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रोज  एकता  की  बात  करते  हैं
जन  जन  से  मुलाकात करते हैं
मैं किसका करूं भरोसा माणिक
अपने   लोग  ही  घात  करते  हैैं 
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मौलिक मुक्तक

      भास्कर सिंह माणिक, कोंच

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