मंच को नमन
मुक्तक
चांद का चांद करे दर्शन
अमावस का कर दे मर्दन
करता काल भी अभिनंदन
देख श्रृंगार का आकर्षन
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आग का नाम लेने से
दीप न जलता।
बिना श्रम के कोई भी
पत्थर न ढलता।
प्रिय भाषण से परिवर्तन
होगा कैसे ।
माणिक सच्चाई को तूं
क्यों न समझता।
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रोज एकता की बात करते हैं
जन जन से मुलाकात करते हैं
मैं किसका करूं भरोसा माणिक
अपने लोग ही घात करते हैैं
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मौलिक मुक्तक
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