कवयित्री कुमारी चंदा देवी स्वर्णकार द्वारा 'करवा चौथ' विषय पर रचना

करवा चौथ

 ए चांँद देवता
हे रूप देवता
 कार्तिक मास कृष्ण पक्ष में
चतुर्थी करवा चौथ व्रत
 सबकी खूब परीक्षा लेते
उस दिन बहुत देर से उदित होते
 करवा ने मिट्टी का मटका
चौथे आने चतुर्थतिथि
 दिन गणपति का
सभी सुहागन मांगे पति का अभय
 निर्जला व्रत सुहागनकरती
 साथी सोलह सिंगार वह करती
 मायके की सगरी वह धरती
 पिया की चुनरी पहन नव नवेली दुल्हन बन जाती
चाहे हो नवीन या प्रदा सभी सुहागन सज जाती
आकाश से वसुंधरा तक चांदछिटक जाता है।
 मेहंदी चूड़ी मांग का टीका
 नथनीजुड़ा बेड़ी कजरा
कजरा महावर फैशन बिछिया सिंगार की सजके
देवी गौरा गणपति शंकर से ले आशीष
अपनी सौभाग्य को करती सफल
 चांदी उसे सुख समृद्धि संस्कार वह मांगे
भारत की नारी हैं भारत के संस्कार वह मांगे
सीता सावित्री और अनुसुइयासे
 वर को वह मांगे
अखंड सौभाग्य हो यह वरदान दो
 हे चंद्र देवता दो ऐसा वरदान
 अखंड सौभाग्यवती भव

-कुमारी चंदा देवी स्वर्णकार

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