अजय पटनायक जी द्वारा खूबसूरत रचना#

मंच- बदलाव अंतरास्ट्रीय, रास्ट्रीय मंच
दिनाँक- 12/11/2020
साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय- दीपोत्सव
विधा-  घनाक्षरी छंद
शीर्षक-  धन

       *धन*  


धन देवी हँस रही, देखो कैसे फँस रही।
काले काले धन संग,आंख को मिलाती है।

जगमग दीये जले,अमीरों के  संग चले।
गरीबों को देखो कैसे,दूर से भगाती है।

बड़े है कुबेर यहाँ, मन के अंधेर यहाँ।
ऐसे बीच रह कर,सबको नचाती है।

फले फुले पाप घर,छोड़े पूण्य का डगर।
माया बन कलयुग,सबको लुभाती है।

धन काला चूमे सभी,पाके देखो झूमे सभी।
चंचला का रूप धर,सबको घुमाती हैं।

सजती बाजार देखो,करती श्रृंगार देखो।
खनक वंचक को जी,रईस बनाती है।

चमक की रात आई,खुशियांँ सौगात लाई।
धन बन कमला जी,सबको रिझाती है।।

धन के ना पीछे भागो,हे मानव तुम जागो।
आती जाती चंचला जी,सबको रुलाती है।।

असली वही दिवाली,सब रहे खुशहाली।
रंज मन त्याग दो जी,सबको हंसाती है।।

जग में उजास हो जी,हर दिन खास हो जी।
दिल मे जलाओ दिये,तम को मिटाती है।।

          मौलिक रचना
       अजय पटनायक
 जिला- रायगढ़, छत्तीसगढ़

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