कवि निर्दोष लक्ष्य जैन द्वारा 'स्वार्थ' विषय पर रचना

दर्द कॊ दोष दे हम भला किस तरह 
                   जब करें आदमी पाप से प्यार है 
    प्यार तो अब  दुनियाँ   में है ही नहीँ 
                  चारों और      स्वार्थ ही स्वार्थ है 
     माथे पर हाथ रखकर पछताते है लोग 
            अपनी करनी पर फिर भी सोच ही नहीँ 
    है वो  पापों में    लिप्त आज इस तरह 
            खुद कॊ खुद की ही आज खबर ही नहीँ 
    दर्द कॊ दोष दे हम भला किस तरह 
                    जब करें आदमी पाप से प्यार  है 
     यारो इसी जमीन में सबकों समा जाना है 
          जाना है तो जाना नहीँ लौट फिर आना है 
    मुट्ठी बांधे आना हाथ पसारे जाना   है 
           सबकों पता     इन्हे क्या    समझाना है 
    पापों पे   पाप इन्हें  करते जाना        है 
        अपना काम " लक्ष्य" यही लिखते जाना है 
    दर्द कॊ दोष दे भला हम किस तरह 
                   जब करें आदमी   पाप से प्यार है 

           स्वरचित .......निर्दोष लक्ष्य जैन

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ