भाईदूज
***********************
स्नेह के अटूट बंधन का,
भैया-दूज त्योंहार।
बार- बार आये हर साल,
कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को।
किवदंती है सूर्यपुत्री,
यमुना ने एक बार।
बुलाया अपने,
भाई यमराज को।
खिलाया छप्पनभोग बनाकर माँगा वरदान,
दीर्घायु हो हर भाई की।
यम भाई ने खुश होकर,
दिया दीर्घायु होने का वरदान हर भाई को।
तब से भाईदूज बना त्योहार,
रखे सलामत भाई-बहन के प्यार-प्रीत को।
आता लेकर हर बार,
खुशियों का उपहार।
दर्शाता बहना का,
भाई के प्रति प्रेम को।
ये दिखाता त्योहार,
भाई-बहन का निश्छल प्यार,
पल-पल देती आशीष,
बहना उस भाई को।
जिसका भईया,
देश-सेवा में कोसों दूर।
सीमा पर देश की रक्षा को,
बहन से बिछड़ने को मजबूर।
मिलेंगें अगले साल देती,
धीरज बहना मन को।
अँखियों में भैया की सूरत,
उमड़े दिल मे प्यार।
हर भइया की बहना,
करें मंगलकामना भैया की।
जैसे यम भइया से मांगा था,
यमुना बहना ने उपहार।
देती आशीष बहना,
रणक्षेत्र में विजयी होने की।
तिलक लगाती बहना,
चंदन,रोली,अक्षत लेकर।
दिल मे दुआएँ देती भाई को,
ये पल आये बार-बार मिलन की।
चाहे हो सात समुंदर पार,
परवाह करे एक दुजे की।
भाई-बहन के प्रीति का त्योहार,
बांधे बन्धन प्रेम डोर की।
करते रहे प्रेम से याद,
हमेशा भाई-बहन को।
ये रिश्ता बड़ा ही सुन्दर,
जोड़े रखें हमेशा डोर भैयादूज की।
---------------------------------------------------------
स्वरचित और मौलिक
सर्वाघिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय
0 टिप्पणियाँ