कुमारी चंदा देवी स्वर्णकार जी द्वारा खूबसूरत रचना#

लघु कथा 
कलाम की बचपन की तीन अभिन्न मित्र जिनके नाम रामानंद शास्त्री अरविंदन और शिव प्रकाशन इन तीनों के साथ अलार्म्स अनेकों तरह के कार्यों को बचपन से ही अंजाम दे रहे थे एक बार की बात है प्राथमिक शाला में तीनों बच्चे बैठे हुए थे नए आए हुए शिक्षक कलाम को सिर पर मुस्लिम टोपी लगाए हुए देखा और जनेऊ धारी बच्चों के साथ बैठे आपस में भाईचारा तोड़ने की दृष्टि से उसने उन्हें दुत्कार दिया और कहा तो मुस्लिमों पीछे जाकर बच्चों ने आपस में जाकर अपने पिता से चर्चा कर वहां पर भाईचारे का परिचय देते हुए शिक्षक से यह कह दिया गया कि एक बच्चा से आप माफी मांगे अन्यथा विद्यालय छोड़कर चले जाएं शिक्षक के मनोभाव बदल गए और वह अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित भाव से समानता के साथ उन्हें शिक्षा देने लगा। यही बच्चे जब आगे जाकर देशभक्ति के लिए कार्य करते हैं तो अपने अपने क्षेत्र से हर धर्म जाति भाषा का प्रादुर्भाव करते हैं और लोगों को आपस में सामंजस्य बनाकर राष्ट्रीय एकता की मिसाल देने का वचनबद्धता के साथ कर लेते हैं और वैसा करके भी दिखलाते हैं

इन्ही एनी चारों बच्चों ने बचपन की दोस्ती को निभाते हुए आगे बढ़कर देश के लिए अनेकों देश प्रेम के कार्य किए जिससे कि इतिहास मैं लिखा गया कि दोस्ती हो तो ऐसी।
एकता और अखंडता इन में कूट-कूट कर भरी थी उन्होंने बचपन से ही यह पढ़ रखा था कि भारत की एकता कोई मिटा नहीं सकता है कहा भी गया है अनेकता में एकता का महामंत्र है
 भाईचारा तो इनका ऐसा कि सदा एक दूसरे पर मर मिटने को तैयार एक ही परिवार में यदि कोई परेशानी आए तो दूसरा परिवार सदा खड़ा रहा दूसरे की परिवार में यदि कोई परेशानी आई तो तीसरा परिवार खड़ा रहा और तीसरे के पास कोई परेशानी है तो चाचा परिवार खड़ा रहा कोई परेशानी आए तो ऐसा नहीं है कहीं भी किसी भी समय किसी भी परिस्थिति में सदा तत्पर रहकर देश सेवा समाज सेवा और देशप्रेम का प्रादुर्भाव किया
। सिरफिरे लोग देश की अखंडता को तोड़ने की कोशिश करते हैं उन्हें इनके द्वारा कड़ा जवाब दिया गया इसे कहते हैं भारतीय एकता और अखंडता अंतिम क्षण मित्र आपस में एक दूसरे का साथ निभाते रहे।

 कुमारी चंदा देवी स्वर्णकार

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