कवि चन्द्र प्रकाश चन्द्र गुप्त द्वारा 'करवा चौथ का "चंद्र" विषय पर रचना

शीर्षक - करवा चौथ का "चंद्र"
          


जो दिवाकर की आभा ढक सकती क्षण में अपने अलौकिक आमोद में

अनुसुइया रूप में त्रिदेव खिला सकती अपनी गोद प्रमोद में

जिसने सत्यवान के प्राण छुड़ाए ,यम को लौटाया विनोद विनोद में

सभी देवों की प्राण शक्ति समायी जिसमें रहते सूर्य-शशि सदा गोद में

यह भारतीय नारी को ही सहज सरलता से भाता है

"चंद्र" जो तुमको माने अपने पति की जीवन दाता है

तुम प्रकटना उचित समय पर मान शक्ति का रखना

अन्यथा गणपति का दिया अभिशाप याद सदा ही रखना

नारी दैवीय शक्ति का स्रोत स्वरूप असीम है

शिव ने समझाया था तुम्हें रूप का घमंड असीम है

अभिशप्त, देख तुम्हें श्रीकृष्ण भी स्यमंतक मणि चोर कहलाए

रामचंद्र, कृष्णचंद्र बचा न सके तब शिव-शक्ति तुम्हें बचाए

"चंद्र" आज हर रमणी चकोर बन तुम्हें निहारती

अवनि से अंबर तक है रह रह कर बुहारती

"चंद्र" तुम्हें सर्व दोष से उबारती

शेखर शिखर शशांक उभारती

तुमसे जिसकी उपमा दी जाती

आज तुम्हें भी वह अनुपम भाती

सृष्टि पृकृति ही समझे ?

तुम उसे अलंकृत करते या वह तुम्हें उपकृत करती

                   
             जय शिव-शक्ति 


 चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"
 अहमदाबाद , गुजरात

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मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंन्द्र अहमदाबाद गुजरात घोषणा करता हूंँ कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित है।
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