कवि डॉ. प्रकाश मेहता द्वारा 'मानवता' विषय पर रचना

*हर बार शरीर में,“विटामिन” ही घटता हो, यह कोई ज़रूरी नहीं है मित्रों...*
*कभी “व्यक्तित्व” का भी, टेस्ट करवाइयेगा, क्या पता “मानवता” भी घट रही हो.

*"व्यक्तित्व" की भी*
*अपनी वाणी होती है,*
*जो "कलम"' या "जीभ"* 
*के इस्तेमाल के बिना भी,* 
*लोगों के "अंतर्मन" को छू जाती है!*
*जिनके विचारों और भाषा में सभ्यता होती है,*
*उनकी जिंदगी में दिव्यता और भव्यता होती है।*

*हमें पत्ता ही नहीं होता है,*
*कहाँ पर बोलना है*
*और कहाँ पर बोल जाते हैं।*
*जहाँ खामोश रहना है*
*वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।*

*कटा जब शीश सैनिक का*
*तो हम खामोश रहते हैं।*
*कटा एक सीन पिक्चर का*
*तो सारे बोल जाते हैं।।* 

*नयी नस्लों के ये बच्चे*
*जमाने भर की सुनते हैं।*
*मगर माँ- बाप कुछ बोले*
*तो बच्चे बोल जाते हैं।।*

*बहुत ऊँची दुकानों में*
*कटाते जेब सब अपनी।*
*मगर मज़दूर माँगेगा*
*तो सिक्के बोल जाते हैं।।*

*अगर मखमल करे गलती*
*तो कोई कुछ नहीँ कहता।*
*फटी चादर की गलती हो*
*तो सारे बोल जाते हैं।।*

*हवाओं की तबाही को*
*सभी चुपचाप सहते हैं।*
*चीरागों से हुई गलती*
*तो सारे बोल जाते हैं।।*

*बनाते फिरते हैं रिश्ते*
*जमाने भर से अक्सर हम*
*मगर घर में जरूरत हो*
*तो रिश्ते भूल जाते हैं।।*
 
*कहाँ पर बोलना है*
*और कहाँ पर बोल जाते हैं*
*जहाँ खामोश रहना है*
*वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।*

*यदि मनुष्य " कम " बोलने का अभ्यास कर ले, तो उसके जीवन की आधी मुसीबतें तो ऐसे ही कम हो जाएँ ।*

*बोलना ऊर्जा का विघटन है और मौन ऊर्जा का संकलन एवं संपादन है..।*
*मित्रों ! मौन रहने का अभ्यास करें..। जीवन धन्य हो जायेगा..

*प्रत्येक सफल व्यक्ति की कहानी के पीछे कई संघर्ष होते हैं , और हर संघर्षपूर्ण कहानी का एक सफलतम अंत होता है।*
*शब्द* के भी *कोष* में, मिलता नही *अर्थ* है। *मनुष्य* को *समझने* में,
मनुष्य ही *असमर्थ* है।

*अतः कहता है "प्रकाश"...*
*अगर जिंदगी को खुशीयों का गुलदस्ता बनाना है तो...* 
*"सरल रहिये", ताकि सब आप से हिलमिल सके,* 
*"तरल रहिये", ताकि आप सबमें घुल-मिल सकें ..!*
*मन के दीपों को जलाए रखिए,*
*आस्था को अपनी बनाए रखिए,*
*प्रेम एक दूजे से ना कभी हो कम,*
*ऐसे गीतों की माला सजाए रखिए।*
*यह कविता बार बार पढ़े। आपको हर बार एक नया अहसास होगा।*

डॉ.प्रकाश मेहता

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