प्रेम कुमार कुलदीप जी द्वारा#हे माँ तुम चुप क्यों हो#

हे माँ तुम चुप क्यों हो ?
कितने तेरे उपवास किये माँ 
कितने व्रत और दान किये माँ 
खूब किया पूजा और ध्यान 
फिर भी तेरे दीदार नहीं माँ - 2 
बेटियां हमारी दुराचारियों द्वारा 
निर्भया, गुड़िया बनाई जा रही है 
नित्य उनके चीर-हरण से 
जीवन उनका दुश्वार हुआ माँ   
फिर भी तूम चुप हो माँ 
हे माँ तुम चुप क्यों हो ?.......

अस्मत बेटियों की रोज लुट रही है 
दुष्कर्मी खुले आम घूम रहे है 
और राजनैतिक संरक्षण से वो 
धर्म-जाति की आड़ ले रहे है 
और पीड़ित परिवारों को धमका कर 
खुद को वो निर्दोष बता रहे है 
फिर भी तुम चुप हो माँ 
हे माँ तुम चुप क्यों हो ?.......

माँ तेरे हमने कई रूप सुने है 
और तेरे कई अवतार सुने है  
पर आज जरुरत तेरी है ज्यादा 
आकर तुम करलो कुछ वादा 
करके बहु-बेटी की रक्षा तुम 
दुराचारियों का संहार करो तुम 
नहीं तो तेरे रूपों की दुनिया में  
बस कल्पना ही कल्पना होगी 
और नित्य यहाँ पर जाने कितनी 
निर्भया और  गुड़िया होगी
फिर भी तुम चुप हो माँ 
हे माँ तुम चुप क्यों हो ?.......

तेरे नौ दिन – नौ रूपों को 
हमने सर आँखों पर बिठाया 
सुंदर वस्त्र आभूषण पहना कर 
स्वादिष्ट व्यंजन का भोग लगाया 
फिर भी यह दुनिया क्यों दुखित है ?
बेटियां हमारी क्यों दुराचारग्रसित है ?
मन से वो कितनी व्यथित है ?
उनका मनोबल बढ़ाने हेतु 
अब तेरा अवतरण जरुरी है माँ  
नहीं तो फिर इस धरती पर माँ 
तेरे नाम की क्या जरुरत है माँ ?
अब भी तुम चुप हो माँ 
हे माँ तुम चुप क्यों हो ?.......

अवसर कितने निकल गए है, 
अपराधों की भरमार हुई है 
और मेरी भारत भूमि पर 
दुष्कर्म की कितनी वारदात हुई  
पर आज जरुरत अब तेरी है माँ 
तेरे फिर से प्रकटन होने की 
संहार दुराचारियों का करके 
बहु-बेटी को सुखी बनाने की ।
उठो नींद से चुप्पी तोड़ो 
कुछ अपना चमत्कार दिखलादो 
आओं माँ दुष्टों का संहार करो तुम
अत्याचारियों का विनाश करो तुम
अपराध मुक्त, दुष्कर्म मुक्त धर्म-जाति मुक्त 
मेरे भारत का नव निर्माण करो तुम
नहीं तो इस भारत भूमि पर 
तेरे नाम की क्या जरुरत है माँ 
अब भी तुम चुप हो माँ 
हे माँ तुम चुप क्यों हो
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प्रेम कुमार कुलदीप

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