भास्कर सिंह माणिक, कोंच जी द्वारा अद्वितीय रचना#

मंच को नमन

     गरीब की दिवाली

करता है रोशन
जलाकर अपना तन
देखकर झिलमिलाते दीया
खुश होता है मन ही मन
इस तरह मनती है
गरीब की दिवाली।

पकवानों की सुगंध
पुष्पों की गंध
महक से बना लेता है
संबंध
कर लेता है संतोष
इस तरह मनती है
गरीब की दिवाली

बहलाता है बच्चों को
समझाता है बच्चों को
है बाजार में मिलावटी मिठाई
बतलाता है बच्चों को
पीकर खून के आंँसू
हंँसता है
इस तरह मनती हैं
गरीब की दिवाली

कोई नहीं सोचता
कोई नहीं देखता
झोपड़ी का टिमटिमाता दीया
आनंदित होता हंँसता
सारा जहांँ
कराहती थी संवेदना
समझाता है खुद को
मुस्कुराता
इस तरह मनती है
गरीब की दिवाली
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मैं घोषणा करता हूंँ कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
             भास्कर सिंह माणिक, कोंच

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