भास्कर सिंह माणिक, कोंच जी द्वारा खूबसूरत रचना#

मंच को नमन
दो मुक्तक
समय चक्र के सम्मुख हारे
बड़े बड़े बलवान।
राई पहाड़ बन गई बंधु
मूर्ख बने विद्वान।
माणिक मैं का सूरज ढला
हम तो अमर हो गया ।
रीति नीति सुपावन प्रीति के
लिखे गये यशगान ।


सौंप चला मैं नव राह पर
तुम्हें चाबियां ।
रखना है अब संभाल कर
तुम्हें पीढ़ियां।
पद चिह्न छोड़कर बढ़ते
वह पूजे जाते।
तोड़ना है आगे बढ़कर
तुम्हें रूढ़ियां।
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मौलिक मुक्तक
         भास्कर सिंह माणिक, कोंच

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