कवयित्री स्मिता पाल द्वारा 'मैं किसान' विषय पर रचना

मां शारदे को नमन, बदलाव मंच को नमन।

सादर समीक्षार्थ,

शीर्षक: मैं किसान 
विधा: कविता


मैं किसान गरीब हूं,
धरती मांँ को पूजता हूं,
अपना कर्म करता हूं,
अन्न मैं उगता हूंँ।

घर की छत टपकती मेरी,
फिर भी बारिश की आस लगता हूं,
जाड़े में ठिठुरते हुए,
फसल की पहरेदारी करता हूं।

सुनता हूंँ आनज का दाम आसमां छूता है,
पर मुझे तो चवन्‍नी ही मिलता है,
ऋण से इतना डूब चुका हूंँ,
रोज़ मर-मर कर बस जी रहा हूंँ।

मरने पर हमारी राजनीति होती,
पर उससे पहले की सुध सरकार ना लेती।
नई नई विकास योजना है बनती,
जो सिर्फ कास (आशा) में ही रहती।

शास्त्री ने हुंकार था भरा,
किसानों का जयकार था किया।
फिर वहीं दिन आएगा,
अन्नदाता किसान खुद अपना समाधान निकालेगा।।

स्मिता पाल (साईं स्मिता), झारखंड
रिसर्च स्कॉलर (अर्थशास्त्र- महिला सशक्तिकरण)

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