कवि निर्दोष लक्ष्य जैन द्वारा 'सच्चा सुख' विषय पर रचना

सच्चा सुख        लघु कथा 
                              स्वरचित निर्दोष लक्ष्य जैन 

   ..रात के लगभग ग्यारह साढ़े ग्यारह बजे थे मेरी 
    स्कूटी अपार्टमेंट के गेट पर जाकर रुकी  हॉर्न मारा         गेट मेन ने आकर गेट खोला मेने स्कूटी पार्किंग में लगाई । तभी मेरी नजर गार्ड के चेहरे पर पड़ी वह बुरी तरह कांप रहा था मेने उसका हाथ छू कर देखा उसे तेज बुखार था मेने कुर्सी पर ही कंबल उढ़ा कर बेठा दिया । अपने फ्लेट में गया एक ग्लास चाय बनाई और एक कालपोल 500 की टेबलेट उसको देकर कमेटी हाल में कंबल उढ़ा कर सुला दिया । फिर  में उसकी कुर्सी पर बेठ गया । अपार्टमेंट के सेकेट्रि मि 
तिवारी कॊ पुरा विवरण सुनाया और कहा अभी में एक डेढ़ घंटे यहां रहकर डय़ूटी करता हूँ उसके बाद 
 कोई और एक दो घंटे डय़ूटी करें सबेरे गार्ड के आने तक उन्होने कहा हम आए हमने कहा अभी नहीँ दो घंटे बाद मि तिवारी ने आकर कुर्सी संभाली और हम फ्लेट में जाकर सौ गए । सबेरे बेल की आवाज से हमारी नींद खुली दरवाजा खोला तो सामने गार्ड खड़ा था आभार प्रगट करने आया था । मेने पर्स से दो सो रुपये निकाल कर उसे दिये कहा किसी डा कॊ दिखा कर दवा लेलेना रुपये देखते उसकी आंखों में चमक और कुछ आँसू छलक गए । मेने कहा क्या बात बोला सर मेरी बीमारी का कारन रुपया ही था कल से घर में राशन नहीँ था बच्चें भूखे थे इसी परेशानी में ने बीमार पड़ गया अब डाक्टर नहीँ राशन की दुकान जाकर राशन लूँगा उसकी बात सुन मेरी आँखे भर गई पर्स खोला तो उसमे एक एकलौता पाँच सो का नोट था मेने वह भी निकाल कर उसे देदिया । उसके चेहरे की चमक देखनें लायक थी । मेरी आत्मा कॊ परम सुख की प्राप्ति हुई ।

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