एकता कुमारी जी द्वारा खूबसूरत रचना#

तुमने मुहब्बत की रस्म को नहीं निभाया क्यों??? 
ग़म के दरिया के पास लाकर मुझे डुबाया क्यों??? 

मुझे मालूम हो गया कि तुम बेवफा हो सनम ,
हर मुलाकात पे सदा झूठा बहाना बनाया क्यो??? 

खुद के दिल को बहलाना तेरा शगल ही था
अपनी हवस का खिलौना मुझे बनाया क्यों??? 

 तेरे मुखौटे को मैं मुहब्बत मान बैठी सनम, 
ऐसी सजा दी ,खुद की नजरों में गिराया क्यों??? 

जरा भी भनक नहीं थी फरेब की मेरे सनम, 
मेरी जिन्दगी में कांटों को तुमने बिछाया क्यों??? 

अपनी बेवफाई का तुमने ऐसा  दिया सबूत, 
आसमाँ से गिराकर जमीन पर बिखराया क्यों??? 

मैंने देवता समझकर तुम्हारी पूजा की हरदम, 
पर,तुम हो शैतान, असली रूप दिखाया क्यों???
           एकता कुमारी

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