कवि प्रकाश कुमार मधुबनी"चंदन" द्वारा 'किसान' विषय पर रचना

*स्वरचित रचना*

*किसान*


सुबह से साम तक खेत पे काम करता जो किसान।
देश के हर निवासियों का पेट भरता जो किसान।।
जिस किसान से मेरे जवान को बल मिलता है।
आज हक के लिए व्याकुल हो रहा है मेरा किसान।।

अपने परिश्रम से पसीने से जो तर बतर होता है।
दूसरों को मुस्कुराहट देने वाला छुप छुप के रोता है।।
जिसके कारण मेरे देश के कोने कोने में है प्राण।
आज अपने भविष्य के लिए सड़क पे है परेशान।।

आज तक जो धरती को चीर अन्न उपजाता है।
जिसके मेहनत के दम पर हर थाली भर जाता है।
जिसके सजग रहने से देश हर मुसीबत झेल पाता।।
उसके थाली में अन्न नही भविष्य में कैसे आये मुस्कान।।

वैसे तो वर्तमान सरकार ने बहुत से है काम किये।
कितने सवालों के ही बढ़ चढ़कर है जवाब दिये।।
फिर हक के सवालों का क्यों नही ले रहे संज्ञान।
समझ में नहीं आता कैसे आये किसानों में जान।।

आओ बहरों के कानो में आवाज़ हम पहुँचा दे।
कुछ नहीं कर सकते तो गलत पे आवाज उठा दे।।
ताकि भविष्य में कोई ना आत्मदाह का कदम ले।
आओ हम मिलके दे इनको भी सपनों की उड़ान।।

**प्रकाश कुमार मधुबनी"चंदन"*

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