सादर समीक्षार्थ
मनहरण घनाक्षरी
दृढ़ तो रखो विश्वास
मन में जरा सा तुम
होगा उजाला फिर से
किरण आस खोज
बेशक ढलेंगे सभी
एक न एक दिन तो
हौसला सूर्य - चाँद सा
उगते हर रोज
करो न कोई शिकवा
कभी भी तुम किसी से
वक्त है देता जवाब
मनाओ तुम मौज
है बड़ा ही मुश्किल सा
वक्त जो चल रहा है
आएँगी फिर बहारें
बहुत न तू सोच
डॉ. राजेश कुमार जैन
श्री नगर गढ़वाल
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