चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र" जी द्वारा अद्वितीय रचना#

विषय -     *किसान*  
मैं स्वयं सरकारी अव्यवस्था और प्राकृतिक विपदाओं से जूझता हुआ लघु किसान हूं- पर भारत का वैभव अमर रहे हम पल रहें न रहें.......

सरकारों को सम्मान किसानों का रखना ही होगा

है आपदा, व्यवधान कोई निर्गत उसे करना ही होगा

जो किया निर्धारित एम.एस.पी.है उस पर धान्य किसान का खरीदना होगा

लोकल प्रशासन का भ्रष्टाचार नियंत्रण , सरकारों को हर हाल में करना होगा

लोकतंत्र में जनता होती है सरकारों की सरकार

जन मन की पीड़ा हरने का कर्तव्य करे सरकार

किसान,जवान या हो देश की तरुणायी सबके सपने हों साकार

पर रहना है सजग दलालों से जो सदा ही करते छुप कर वार

जो करते सदा ही छुप कर वार होता नहीं उनका कोई आकार

भेड़िये ओढ़ कर सिंह की खाल तत्पर रहते बस घेरने सरकार

जिन्होंने नहीं देखा कभी खेत की मेड़ों को वो वन रहे बड़े किसान

देश की रहती जिन्हें परवाह नहीं, रखते कहीं निगाहें कहीं निशान

स्वरा भास्कर जैसे बता रहे अपने को नेता बड़ा किसान

भारत का बच्चा-बच्चा समझ रहा है कौन सुलगा रहा विहान

धराशाई जंग में जनता ने किया है जिनको, मान रहे अपने को किसान महान

सच्चे किसान की आत्मा में बसता है भारत ,है उसे सबकी पहचान

जो ओढ़ रजाई सोते रहे वर्षों, आग लगा कर तापना उनकी है पहचान

दूरी उनसे राखिए , वृहद आंदोलन नैतिक करे किसान

सरकारों को सम्मान किसानों का रखना ही होगा

है आपदा, व्यवधान कोई निर्गत उसे करना ही होगा

      जय भारत - जय किसान

          चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र"
          अहमदाबाद , गुजरात

***********************मैं चंद्र प्रकाश गुप्त चंद्र अहमदाबाद गुजरात घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है।
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