राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच
विषय :- किसान
कविता :- मृण से प्यार
मृण से प्यार करता हूँ
अविराम काम करता हूँ
सूर्य शशि सदृश |
रीढ़ की हड्डी हूँ
इस देश का अन्नदाता भी |
शोणित स्वेद एक
कर मशक्कत दिन रात
एक कर आह्लाद रखना
चाहता हूँ सब को |
मुझ पर निर्भर करते
अर्थव्यवस्था देश के एक
दिन भी अनुपस्थित नही
रहता अपने कर्त्तव्य निभाने में |
कर्ज कर फर्ज
निभाने मुश्किल नहीं,
फिक्र करता हूँ अपने देश
परिवार का |
कभी नहीं सोचा
अपना फ़ायदा फसल
में मान रखा कृषि उत्पादन
बढ़ाने |
हर मौसम में खेतों
की देखरेख कर निभाते
अपने कर्त्तव्य |
करते मुझ पर राजनीति
उमंगों का सपना दिखाते
हाल बेहाल की चिंता नहीं करते |
कभी अनावृष्टि कभी
अतिवृष्टि में झेल कभी
कीट के प्रहार से ना हार
मानुंगा समा जाऊंगा मिट्टी
बन कर |
आज करते हैं मेरी
लाश पर देश निदेश चर्चा |
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