कवयित्री गीता पाण्डेय द्वारा 'पुस्तकालय' विषय पर रचना

पुस्तकालय


पढ़ने की अभी कोई उम्र नहीं होती है।
यह हरदम ज्ञान के बीज को बोती है।

 जीवन में हमेशा उत्साह होना चाहिए।
पुस्तकों को पढ़कर हमेशा सीख लीजिए।

 आप अपने जीवन में कितने भी रहो व्यस्त।
 पर पुस्तके पढ़ने को निरंतर ही रहो अभ्यस्त।

पुस्तकालय में आप जाकर करो  सदा पढ़ाई।
 जीवन सरल बनेगा सरल हो जाएगी चढ़ाई।

 विद्या कभी भेदभाव नहीं है किसी से करती।
 अज्ञानता  के तम वाह कठिनाइयों को हरती।

निरंतर अभ्यास से ही विद्या मैं वृद्धि आती है।
ह्रदय में ज्ञान की गंगा भी भर लहरा जाती है।

पथ प्रदर्शित कर के सच्ची राह को दिखाती है।
सदा इसे अर्जित करना इसका रूप सुहाती है।

ज्ञान चक्षु को खोल कर जीना हमें सिखाती है।
बैर भाव मिटा कर मानवता की राह बताती है।

पुस्तकालय होता है संग्रहीय का बड़ा खजाना।
 यहां अध्ययन के लिए हरदम ही आना जाना।

 स्वरचित व मौलिक
गीता पांडे रायबरेली उत्तर प्रदेश

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ