मंच को नमन
चंद दोहे
वृद्धों का मत कीजिए ,
आप कभी अपमान।
बढ़-चढ़कर के कीजिए,
वृद्धों का सम्मान।।
जो नित छूते हैं चरण,
वृद्धों के श्रीमान।
जगह जगह मिलता उसे,
माणिक जी सम्मान।।
उठकर के नित लीजिए,
वृद्धों का आशीष।
व्यर्थ कभी जाता नहीं,
बुजुर्गों का शुभाषी।।
सुंदरता की खान है ,
कुदरत की पहचान।
नारी पर एसिड उछाल,
करता क्यों अपमान।।
देव दनुज नर सब करें,
नारी का सम्मान।
तूं एसिड का विरोध कर ,
बनता क्यों अनजान।।
सारा जग यह जानता ,
नारी नर का मान।
माणिक एसिड उछाल कर,
दिखा रहा है शान।।
प्रिया तेरे तेज से,
फीका लगता घाम।
जाग उठा तुम्हें देख,
मेरे मन का काम।।
आंचल के सम्मुख हुआ,
मलिन जेठ का घाम।
माणिक माता चरन में,
बसते चारों धाम ।।
लज्जित श्रमिक से हुआ,
तन झुलसाता घाम।
जो करते कुछ देशहित,
होता उसका नाम।।
बिन दहेज के करेंगे ,
माणिक हम निर्वाह।
अब तो करवा दीजिए,
मेरा बंधु विवाह।।
पूरन कब होते कहां,
कायर के अरमान।
जो कुछ करते देश हित,
वे पाते सम्मान।।
सैनिक बन सेवा करूं,
करें देश का नाम।
मेरे मन अरमान था,
जीवन कर दें दान ।।
जीवन जाए देश हित,
मां दें दे वरदान ।
भूमि शत्रु पानी मांगे,
पूरन हो अरमान।।
दीन हीन को जगत में ,
देते सब दुत्कार ।
कागज में सुंदर लगे,
लिखे शब्द उपकार।।
कोई भी सुनता नहीं,
माणिक निर्धन बात।
कैसे कटती आपकी,
पूछ रहे हैं रात।।
मां की कृपा मात्र से,
बनते बिगड़े काम।
माता के जयकार से ,
जग में होता नाम।।
मां चरणों में जो झुका,
मिला उसे आशीष।
मात-पिता वरदान को,
समझो तुम बकसीस।।
माता तेरे चरण में,
झुका रहा हूं शीश।
हम शत्रु कर सके ग्रास ,
दो ऐसा आशीष।
आशिष पाते हैं वही,
जो जन करते मान ।
व्यर्थ कभी जाता नहीं,
माणिक जीवनदान।।
क्रोध भूलकर मत करो,
बिगड़ेंगे सब काम।
सबसे मीठा बोलिए,
ऊंचा होगा नाम।।
भूखे बच्चे बिलखते,
माणिक मां बेहाल ।
पूछ रहे हैं भेड़िए,
जतन जतन से हाल।।
जीवन में यदि चाहिए,
दुनियां में सम्मान।
अनुभव पहले कीजिए,
तब करिएगा काम।।
सुंदर रखिए कामना,
कृपा करेंगे ईश।
मन निर्मल हो जाएगा,
भजिए नित जगदीश।।
जो करते हैं प्रार्थना,
ईश चरण में बैठ।
पूरन होती कामना,
पूस होय या जेठ।।
परहित की रख कामना,
जो जन करते काम।
होता है संसार में,
उसका निश्चय नाम।।
कभी भूलकर किसी का,
मत कीजिए शोषण।
निर्बल और निर्धन का ,
बंधु करिए पोषण।।
लोग देखते रह गए,
वह ले गया काजल।
संसार समझता रहा,
माणिक जिसे पागल।।
चलो आज मिलकर करें,
मान शरद ऋतु राज।
लगती धूप सुहावनी,
बदला है अंदाज।।
सुविधा के हाथ बिकते ,
माणिक बेईमान।
पूजा है संसार ने,
सत्य और ईमान।।
डाल गेहूं चकिया में,
मन ही मन मुस्कात।
चूड़ी कंगना खनके ,
देख पिय हर्षाता।।
फांसी चूम अमर हुए,
भारत मांँ के लाल।
जड़ा तमाचा जोर का ,
निडर गुलामी गाल।।
मौलिक दोहा
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