कवि बृंदावन राय सरल द्वारा रचित दोहे

दोहे,,,,
अंतरिक्ष,,,
अंतरिक्ष अब रो रहा। हमसे कहता आज ।।
धरती को तो खा लिया।मेरा
करो इलाज।।

सुरभि,,,
फूलों से गायब सुरभि।आया ऐसा
काल।।
मौसम भी बेहाल है।जनता भी
बेहाल।।

सविता,,,
सविता शुचिता सार्थक,पावनता
के रूप।।
इनके बिन तो मन रहे। जैसे
एक कुरूप।।

बृंदावन राय सरल

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