अनिल मोदी जी द्वारा अद्वितीय रचना#

तिथि10 - 12 - 2020
विषय जिया बेकरार है, छाग बहार है।
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जिया बेकरार है 
व्यापारी परेशान है।
किसान के नाम विपक्ष त्रस्त है, भारत कराते बंध है।
बरसात ही खेती का आधार है, 
सरकारी सहायता पाकर बिचौलियों से परेशान है।
नोटबंदी आतंक बंदी से विपक्षी चंद नेता परेशान है।
वोट बैंक और जातिवाद बिना नैया, नेता की नींद हराम है।
पेसो पर उद्योगपति को गुमान है।
श्रमिक बिन हर धंथा बेजान है।
पति पत्नी में प्यार है।
दो गज दूरी व्यवधान है।
कोरोना दुश्मनी प्रहार है।
वैक्सीन बिन जीना दुश्वार है
मुँह पर पट्टी बंधी है,
मुस्कान चेहरे की गायब है।
आॅन लाईन धंधे में उबाल है
मध्यम छोटा धंधा हो रहा निष्प्राण है।
सरकारी नीती ना सुधरी आर्थिक मंदी लीलेगी प्राण है।
 ये मेरी मौलिक रचना है और इसे प्रकाशन का आपको सर्वाधिकार है।
अनिल मोदी, चेन्नई3

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