डॉ राजेश कुमार जैन जी द्वारा खूबसूरत रचना#

सादर समीक्षार्थ
 विषय- मोहब्बत हो गई है


 मुहब्बत हो गई है किसी से
 ये कहाँ पता होता है भला
 शरारत आँखें कर गई हैं
 बदनाम ये दिल हो रहा है..।।

 मुहब्बत हो गई है किसी से
 ख्वाहिशें जवां सी हो रही हैं
 बेचैनियाँ बढ़ती जा रही हैं
 गुमसुम सी जिंदगी हो गई है..।।

 मुहब्बत हो गई है किसी से
 उनकी शोख अदाओं ने हमें
 तो बस पागल ही कर दिया है
 अपना दीवाना बना लिया है..।।

 मुहब्बत हो गई है किसी से
 चैन औ सुंकूँ भी छिन गया है
हमें तो पागल ही कर दिया है 
 जाने ये क्या हाल हो गया है..।।

 



डॉ राजेश कुमार जैन
 श्रीनगर गढ़वाल
 उत्तराखंड

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