अनिल मोदी जी द्वारा खूबसूरत रचना#बदलाव मंच#

विषय :- पर्यावरण संरक्षण
विधा :- कविता
रे मानव सुन धडकन धरा की
उसके अंतर के चित्कार की
रह रह कह रही अपनी व्यथा 
क्युं नोचे मुझे इतना क्या वैर है मुझसे
किस जुर्म की सजा दे रहा तु मुझे
ये खेत खलिहान हरियाली मेरी
ऋतुओं का श्रृंगार मनभावन मेरी
तेरी हवस विलासिता की ले डुबी इमारतो के जंगल खडे किये
घरो में विलासिता के साधन प्रदुषण  भरे
जीव हिंसा कर उर्वरक खत्म किये
जो पेड प्रचुर ऑक्सीजन के स्रोत थे
हर जगह से वीरान किये
पशुओं को कारखाने भेज चंद सिक्के के लिये
कितना नुकसान किया
 खेती में रसायन से उत्पन्न अनाज रोगों को जन्म दिये।
कारखानों से निकली गैस और कचरे
नदियां प्रदूषित हवायें प्रदुषित ओजोन परत को क्षति
आखिर निदान ढूंढना हुआ जरुरी
उन्नत पर्यावरण के लिये नदियों को जोडना होगा।
नहरों को जोड सफाई करना होगा।
स्वच्छता को प्राथमिकता हमें देना होगा।
प्रदुषण मुक्त साधन जुटाना होगा, पर्यावरण संरक्षण में सर्वप्रथम हमें आगे आना होगा।
तब ही भगीरथ कार्य पूर्ण हो पायेगा।

ये मेरी मौलिक रचना है और इसे प्रकाशन का आपको सर्वाधिकार है।
ईमेल:- anilkumarmodi2011@gmail.com
अनिल मोदी,चेन्नेई3

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ