रुपक जी द्वारा अद्वितीय रचना#

मैं लिखता हूं।
शिशु के प्यार सी मुस्कान 
और उसकी अल्लहड़पन
और उसके नादानी के
साथ उसके बदमाशी को 
बेमतलब सी मुस्कान को
भी लिखता रहता हूं।
जब किसी की याद बहुत
 आती है तब लिखता हूं।
उस ख्वाब को जिसे हर पल
देखा करता हूं और वो जो
ख्वाब मर गया है किसी 
कारण तब भी लिखता हूं
प्रकृति की सुन्दरता को और
उसके नजारों को लिखता हूं।
ये मेरी नज़रे जैसा देखती है
उसको वैसा ही लिख जाता हूं
किसी की दर्द को लिखने के
लिए मन बैचेन हो जाता है
तब जाकर लिख जाता हूं।
ना शब्द का ना छंद का और 
अलंकार का ख्याल रहता है
 बस सिर्फ लिखता जाता हूं।
मेरा लिखा किसी को अच्छा
भी लगता है मैं बस यही सोच
कर सिर्फ लिखता रहता हूं।
मैं किसी बंधन में नहीं लिखना
चाहता हूं और लिखना भी चाहूं
तो मैं नहीं लिख पाता हूं ।
शायद वो विषय मेरे मन को
गहराई तक नहीं छू पाता है।
जो भी दिल से निकलता है
बस उसी को मैं कागज पर
 ही उतार पाता हूं।
मेरे लिखने से किसी को
 कुछ फर्क पर जाए या
थोड़ा सा भी बदल जाए 
 इसलिए मैं लिखता रहता हूं।
© रुपक

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