आत्मनिर्भर भारत की उड़ान#भास्कर सिंह माणिक, कोंच#

मंच को नमन
राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच
साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय-आत्मनिर्भर भारत की उड़ान
विधा -कविता
छू रहा शिखर 
लक्ष्य पर नजर 
जला रहा दीप
बढ़ रहा निडर
बनाई अनूठी पहचान
जग गाता है गान
यही है
आत्मनिर्भर भारत की उड़ान

किए अनेक अनुसंधान
बनाए देशहित विधान
प्रगति तकनीकी में कर
सफल किए अभियान
बनाए बड़े-बड़े मिसाइल
हे हमारे वैज्ञानिक महान
यही है
आत्मनिर्भर भारत की उड़ान

घर घर हमनें दीप जलाया
वेदों का अर्थ समझाया
रहे निरक्षर न कोई धरा पर
शिक्षा से जोड़ा और जगाया
महत्वपूर्ण है शिक्षक का योगदान
बच्चे बन रहे ज्ञानवान
यही है
आत्मनिर्भर भारत की उड़ान

बदल दिया इतिहास
तम का किया ग्रास
हुआ बदलाव जीवन में
मिटें मन के भाव निराश
निर्भय महक रहा उद्यान
हम नित करते नव उत्थान
यही है
आत्मनिर्भर भारत की उड़ान

अपने ज्ञान विज्ञान से
झुकाया विश्व सम्मान से
रचे नूतन स्वर्ण पृष्ठ हमनें
कहता हूं स्वाभिमान से
संस्कृति परंपरा का रखता ध्यान
गाता हूं जन गण मन गान
यही है
आत्मनिर्भर भारत की उड़ान
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
           भास्कर सिंह माणिक, कोंच

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