मंच को नमन
दिनांक:- ०४/१९/९०
विषय:- चिराग़
चिराग लिए एक शहर से
शायद आज दोपहर से
देखा है मैंने तुझको
अपनी ही नजर से
क्यों हुआ यह किसी का।
मैं हूं बस उसी का।
ख्वाबों में वह क्यों है आया
क्यों मेरे दिल में चिराग जलाया।
अंगारों की वह चिंगारी
जैसी माली और उसकी छोटी क्यारी जैसे एक अपनी कहानी
बाकी सब दुनिया की दुनियादारी
क्यों आंखों में देखे सपने।
जो ना हुए मेरे अपने
मैं कैसा गीत गा रहा हूं
चिराग से खुद को जला रहा हूं।
स्वरचित
दीपक कुमार पंकज
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