डॉ. राजेश कुमार जैन जी द्वारा अद्वितीय रचना#

सादर समीक्षार्थ

 काँच की गोलियाँ

 रंग बिरंगी काँच की ये गोलियाँ
 छुपी हैं इनमें बहुत सी कहानियाँ
 जीवन की अद्भुत हैं ये निशानियाँ
 होती थी बचपन में इनसे लड़ाईयाँ..।।

 हारते तो रोने लगते थे कई बार 
जीतने पर खुशी होती थी अपार 
दोस्ती कराती थी काँच की गोलियाँ
 जेब में भर घूमते थे बार-बार..।।

 रंग बिरंगी सी इनकी वो आभा
 मन को तो बड़ा ही वो लुभाती थी
 छोड़-छाड़ के काम हम भी तो सभी
हरदम कंचे ही खेला करते थे..।।

 बचपन हमारा था कितना  शानदार
 किस्से हैं गोलियों के भी मजेदार 
काश फिर से आए जीवन में बहार
 फिर से मिलकर खेले कंचे हम एक बार..।।



 डॉ. राजेश कुमार जैन
 श्रीनगर गढ़वाल
 उत्तराखंड

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