जिसने दिए दर्द हज़ार
मानसिक तनाव और डर
क़ैद में ज़िंदगी मौत बाहर
जागते वो राते भय के दिन
वैक्सीन के इंतेज़ार दिन गिन
कोरोना के डर से धोते हाथ
राशन को धो कर ख़ुद में लीन
मास्क़ सेनिटाइजेर बने अपने
छूट जो गए सब अपने सपने
ना जन्मदिन की पार्टी ना खेल
उत्सव तीज त्योहार बीते कितने
बंद दरवाज़े प्रार्थना की आवाज़
ईश्वर से हाथ जोड़ मन्नतें हज़ार
सलामत रखना हर अपने को मेरे
महसूस होता हम कितने लाचार
हर खाँसी पर शक हर छींक डर
जैसे कभी देखा नहीं बुखार अब
वो काढ़ा का चूल्हे पर खदक़ना
मन में कुछ तस्सली कर जाती घर
कितनो को जाते देखा दुखी मन
घर कितने उजड़ गए करोना डर
काम धंधे बंद भूख और बीमारी
बचना किससे हैं कुछ नहीं तय
कैसे भूलेंगे ये साल तेरे ज़ख़्म
मौत के बाद भी ना मिला सकूँ
अपनो को भी ना मिला ये हक़
संक्रमण से बचने के नियम शख़्त
मन करता जल्द कहे गुड बाय।
दिल पर दिए है जो बहुत घाव
थाली घंटी संग डर पर विजय
२०२० अब तुम्हें गुड बाय ।।।
स्वरचित - सीमा पासवान
0 टिप्पणियाँ