नन्दलाल मणि जी त्रिपाठी पीताम्बर जी द्वारा#वक्त को जान इंसान#

वक्त को जान इंसान
मत जाया होने दे 
कर  वक्त कद्र बन कद्रदान
वक्त के  इम्तेहान से
ना हो परेशान।।
वक्त को जो जानता पहचानता
वक्त के लम्हो को संजीदगी
से जीता गुजरता 
वक्त उसको देता तख्त ताज की 
सौगात अरमानो की अविनि आकाश।।
वक्त का लम्हा लम्हा कीमती
दामन दिन ईमान कहता है
गीता कुरान वक्त पे मत
तोहमत लगा वक्त संग 
साथ जीने वाले पर मेहरबान।।
सुरखुरु होता इंसान वक्त की
राह में खुद की चाह में मीट
जाने के बाद वक्त ही लिख देता
तकदीर इंसान बन जाता खुदा
भगवान।।
वक्त प्रवाह मौजो का उतार
चढ़ाव वक्त समंदर की लहरों
जैसा जिंदगी के मुसाफिर की
मंजिल मकसद का पैमाना माप।।
वक्त जानता पहचानता 
के कदमो के निशान खुद के तमाम
इम्तेहान से गुजरे इंसान सौंप देता
जहाँ का दींन ईमान।।
वक्त काट मत क्योकि
वक्त तो कटता नही तू खुद
कट जाएगा जिंदगी की शाम
से पहले ही किनारे लग जायेगा
गुमनामी के आंधेरो में खो जाएगा
सिर्फ भुला देने वाला रह जाएगा
नाम अंजना अनजान।।
वक्त की नज़रों का  नूर
हाकिम हुज़ूर वक्त मेहरबान
कमजोर भी ताकतवर जर्रा भी
चट्टान वक्त के तीन नाम परसा
परसु परशुराम।।
नन्दलाल मणि  त्रिपाठी पीताम्बर

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