दिल की किताब
यादों की इस किताब में
मैं किताब खोल करबैठ गई
कुछ सोचने लगी,
कुछ लिखने लगी
नारी की सब बातें करते
ममता त्याग को लखते
नर है तो नारायणी वह
ऐसा सुंदर भाव हे रखते
पुरुष तुम्हारा कांधा पाकर मैं सशक्त हो जाती हूं
पिता बनके प्यार लुटाते
अपनी ना सोच बच्चों की सोच जाते
तब भी तुम संबल हो जाते
लालन-पालन में बच्चों के
अपनी सुध बुध तुम बिसराते
भाई रूप में तुमको पाकर
धन्य धन्य हो जाती हूं
हर समय चिडा चिडाकर कर मुझको
सबसे ज्यादा ध्यान रखते
पल में झगड़ा पल मे प्यार
सबसे मेरे लिए झगड़ते
रखते हो तुम मेरा ध्यान
छोटे होने पर भी मुझ पर
खूब रोब जमाते हो
भाई तुम अपना फर्ज खूब निभाते हो
पति रूप में साथ तुम्हारा
मुझे भावविभोर कर जाता
सुख दुख के साथी बन मेरे
हर बात को तुम समझाते हो
प्यार तुम्हारा इतना पाकर
धन्य धन्य में हो जाती
बेटा रूप में तुमको पाकर
मम्मतव से भर जाती
सृष्टि चले ना बिना तुम्हारे
नर नारायणी दोनों पूरक
दिल की कलम से
मधु अरोड़ा
28.3.2021
होली
होली कैसे खेलूं मैं
सांवरिया जी के संग
भर पिचकारी माथे मारी
झूमर हो गया तंग
लाज मोहे आवे चुनर भीग जावे
होली के रंग में तन मन भीगाजाये
होली कैसे खेलूं सांवरिया जी के संग
भर पिचकारी सीने मारी
चोली हो गई तंग
रंगों में रंग चढ़ा प्यार का
शरमाऊं में हरदम
होली कैसे खेलूं
जी सांवरिया जी के संग
भर पिचकारी ढूंगे मारी
तगड़ी हो गई तंग
साड़ी हो गई तंग
गीली गीली खड़ी लजाऊं
रंग ,अबीर ,गुलाल उड़ाऊं
मैं तो प्रिय संग होली मनाऊं।
दिल की कलम से
मधु अरोड़ा
27.3.2021
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