धृतराष्ट्र अपनी आँखें खोलो#प्रकाश कुमार मधुबनी'चंदन जी द्वारा खूबसूरत कविता#

*स्वरचित रचना*

हे धृतराष्ट्र अपनी आँखें खोलो
हे धृतराष्ट्र अपनी आँखें खोलो।
अब तो स्वयं राष्ट्रहित में बोलों।
मर्यादा को अपने पहचान कर।
पुत्रमोह से ऊपर राष्ट्र को मानकर।

न्याय का तराजू ले निष्पक्ष भाव से।
कुंठित न हो स्वयं के स्वभाव से।
अपने अन्तः मन का पट खोलो।
अब तो तुम न्यायसंगत बोलो।

शेषनाग  के फन खोलने से पहले।
दबाब में अनुचित बोलने से पहले।
सत्य असत्य का पृर्ण भेद टटोलो।
आवेश से अब ऊपर उठकर बोलो।

अरे युद्ध ताण्डव होने क्यों देना।
बेवजह मारी जाएगी लाखो सेना।
हो सके तो अब भी जागृत हो लो।
हे धृतराष्ट्र अपनी आँखें खोलो।

स्वयं के चमन का रखवाला होकर।
अपनी बहू की लज्जा को खोकर।
क्या अपने पूर्वजों से आँखें मिला सकोगे।
विध्वंस में क्या स्वजनों को बचा सकोगे।

आया है गिरधर फिर तुम्हे जगाने।
भविष्य की आइना तुम्हे दिखाने।
स्वयं व्याकुल मन को स्थिर करो।
हे राजन तुम मरने से पूर्व न मरो। 

*प्रकाश कुमार मधुबनी'चंदन'*

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