पिंजरे का कैदी-कहानी# स्नेहलता पाण्डेय जी द्वारा#

कहानी (स्नेहलता पाण्डेय)

पिंजरे का कैदी

उन दिनों मैं सरकारी मकान में रहती थी। मेरे पति का हर तीन साल में तबादला हो जाता था, इसलिए हमें मकान शिफ्ट करने का एक बहुत बड़ा काम होता था। इस बार भी हमने अपना मकान बदला था। यहां आकर हमने अपना सामान किसी तरह व्यवस्थित किया।अब बारी थी, काम वाली बाई ढूंढने की। वैसे तो हमें सर्वेंट क्वार्टर मिला हुआ था।


लेकिन इस नए शहर में हमारा जानने वाला कोई नहीं था, मैं सुबह का काम खत्म करके अभी बैठी थी कि किसी ने बेल बजाया। मैंने दरवाजे में लगी होल से झांक के पूछा कि क्या काम है ? उसने कहा - मैडम आपका सर्वेंट क्वार्टर खाली है क्या? 

मैंने बोला-  "हां खाली तो है लेकिन मुझे किसी अनजान लोगों को नहीं देना है"।

वह बोली-" मैडम जी एक बार बात तो कर लो"।

उसने अपना नाम कमला बताया और कहा -"मैडम जी, हम लोग अभी बहुत परेशान हैं। हमारा सामान बाहर पड़ा हुआ है । मैं जिनके मकान में रहती थी, वह साहब रिटायर हो गए हैं। हमें कल तक उनका मकान खाली कर देना है। कल तक वह भी चले जाएंगे।

मैंने कहा- "नही,अभी मुझे नहीं जरूरत है "।

वह गिड़गिड़ाने लगी - "मैडम जी ,कल से हमारी नवरात्रि शुरू होने वाली हैं "। 
मुझे माता की पूजा भी करनी होती है, मैं कैसे करूंगी सब। हम लोग ठहरे धर्म भीरु लोग माता का नाम सुनकर  मैंने थोड़ा सोच विचार करना शुरू कर दिया।

मैंने कहा- "मैं अपने पति से पूछ कर बताऊंगी तुमको"।वह शाम को आने का बोलकर  चली गई। शाम को मेरे पति घर ऑफिस से घर आए। मैंने उनको बताया कि एक काम वालीआई थी और वह कमरा मांग रही थी। मेरे पति बोले कि बातचीत में वह  कैसी लग रही थी ?
मैंने कहा कहा - "बातचीत में ठीक तो लग रही थी ,लेकिन थोड़ी देर में कोई कैसे किसी को जान सकता है"।शाम को वह फिर आएगी। जैसा कि उसने कहा था। वह आई और बोली -"मैडम आपने साहब से पूछ लिया है "?  मैंने कहा-" हां पूछ तो लिया है लेकिन हम अभी भी सोच नहीं पा रहे हैं। मैं तुमको अभी इतना जानती भी नहीं हूं"। 

उसने कहा - "मैडम जी हम आपको कभी शिकायत का मौका नहीं देंगे"।

मैंने कहा -"पहले सभी ऐसे कहते हैं , बाद में पता चलता है कि कौन कैसा है "।

इस पर वह बोली  -" मैडम जी आप हमें 2 महीने के लिए दे दो कमरा, अगर मेरा काम या हम लोग आपको पसंद नहीं आएंगे तब हम आपका कमरा खाली कर देंगे"। आप हमसे कमरा खाली करवा लेना। वह थोड़ी बातूनी लग रही थी, बातों ही बातों में उसने अपने परिवार के बारे में भी बताया।

मैंने उससे पूछा -"तुम्हारे परिवार में कितने लोग हैं"? 

उसने कहा -पति और तीन बच्चे हैं । दो बेटे हैं और एक बेटी । वह आगे बताने लगी कि उसका एक बड़ा बेटा भी था, जो अब 20 साल का होता,वह एक रोड एक्सीडेंट में मर चुका था ।उसकी भावनात्मक बातों से मेरे दिल में थोड़ी जगह बनने लगी उसके लिए।

मैंने उसको बोला - मैं तुम्हें सोच कर बताऊंगी, तुम अपना फोन नंबर दे दो। इस बात पर वह रोनी सूरत बना कर बैठ गई तो मैंने कहा -अच्छा अपने पति को लेकर आओ। उसका पति भी बाहर नीचे खड़ा हुआ था, वह गई और अपने पति को बुलाकर ले आई। उसके पति से भी हमारी बातचीत हुई और मैंने उसको सर्वेंट क्वार्टर दे दिया ।उसने उसी रात अपना सारा सामान ले आकर कमरे में  व्यवस्थित कर लिया ।

मैंने  उससे कहा -"तुम्हें अभी एक-दो दिन काम पर आने की जरूरत नहीं है "। तुम अपना व्रत कर लेना तब आना । मेरे पति भी नवरात्रों का व्रत करते हैं ,मैं भी नवरात्रों की तैयारी में व्यस्त हो गई। मैंने सोचा कि वह अब 9 दिन बाद ही आएगी लेकिन वह तीसरे दिन ही आ गई।

मैंने कहा -" तुम इतनी जल्दी क्यों आ गई "?
इस पर वह बोली - मैडम जी, मैंने कमरा व्यवस्थित कर लिया है । सब सामान लगा दिया है,बस एक पानी की टंकी ला करके रखनी है।  मैं कर लूंगी घर का काम। वह मेरे बताए अनुसार काम करने लगी। काम करने में वह ठीक ठाक लगी, लेकिन वह बात थोड़ा ज्यादा करती थी और मैं बात कम करना पसंद करती थी लेकिन  मुझे भी उसकी जरूरत थी।

कुछ समय बाद सर्दियां आ गई। मैं सर्दियों में थोड़ी देर छत पर बैठती थी ।उसके भी पति काम पर चले जाते थे और बच्चे स्कूल । वह काम करते-करते छत पर मुझ से भी बातें करती थी। एक दिन बातों बातों में उसने अपने बच्चे के एक्सीडेंट के बारे में बताया कि उसके बेटे का एक्सीडेंट कैसे हुआ था और वह कहां पर पढ़ता था इत्यादि।

मैंने छत पर एक पिंजरा रखा हुआ देखा । उसमें एक तोता बैठा हुआ  था । तोता बहुत प्यारा था। 
मैंने उससे पूछा -तुमने तोता भी पाल रखा है ?

वह बोली - "हां मैडम जी यह तोता मेरा बेटा दीपक लाया था जो अब नहीं रहा "। 

जब यह तोता तीन दिन का था , इसको लेकर आया था । मैं इसको रुई से दूध पिलाती थी ।दीपक इसकी बहुत देखभाल करता था और इसके साथ खेलता था। अभी ये तीन साल का हो चुका है। वह प्यार से अपने तोते को कुक्कू बाबू बुलाती थी और वह उसका जवाब देता था । लेकिन वह किसी और से बातें नहीं करता था। अपने पिंजरे में ऊपर से नीचे चहल कदमी करता रहता । बाद में मेरे घर में भी कोई रिश्तेदार आता, जान पहचान का आता,उनके छोटे बच्चे भी तोते के पास जाते और खेलते । इस तरह से वह तोता छोटे बच्चों का पसंदीदा खिलौना बन गया था। वह काम करती  और  बातें भी  करती कि वह इससे पहले भी इस इलाके में रह कर चुकीथी ।  यहां काफी लोगों को जानती थी ।

एक दिन वह काम करने आई लेकिन उसका चेहरा उतरा हुआ था । मैंने पूछा - क्या बात है तो वह चुपचाप काम करने लगी। फिर थोड़ी देर बाद उसने खुद बताया कि मैडम जी मेरा कुक्कू उड़ गया।

मैंने पूछा - कैसे उड़ा ?

वह कहने लगी- मैडम जी छत पर एक बंदर आ गया था शाम को। उस समय अँधेरा होना शुरू हुआ रहा था । मैं उसको रोटी देने चली गई। हम शाम को थोड़ी देर कुक्कू को कमरे में खोल कर रखते हैं। वह कमरे में ही दौड़ता रहता है , पंखे पर जाता है , खिड़की पर जाता है इसतरह वह पूरे कमरे में  घूमता रहता है । मैं मैं बंदर को रोटी देने गई और वह मेरे पीछे पीछे छत पर आया लेकिन मैंने ध्यान नहीं दिया। मेरे पति और दोनों बच्चे कमरे में थे।

उन्होंने सोचा कि वह मेरे पीछे आया हुआ होगा , मैं उसको देख रही हूं। लेकिन मैंने उसको देखा नहीं। मैं बंदर को रोटी देकर कमरे में आई तो मैंने देखा कि कुक्कू कमरे में नहीं था। मैंने खिड़की पर देखा, पंखे पर देखा, कमरे में चारों तरफ देखा लेकिन कुक्कू नहीं दिखा। मैंने छत पर ढूंढा तो मुझे एक वहां पर बिल्ली दिखी। अब मुझे बहुत डर लग रहा था , कहीं बिल्ली उसको ले ना जाए । मैं उसको बहुत बैचैनी से सभी  जगह ढूंढ रही थी। 

मैंने नीचे भी जाकर ढूंढा, आस पड़ोस में भी। लेकिन  वह कहीं भी नहीं दिखा।  मैं रात भर  कुक्कू के लिए जगी रही शायद वह किधर से भी आ जाएगा। मेरे पति बोले - सो जाओ सुबह ढूंढ लेंगे । पूरी रात मुझे नींद नहीं आई। मुझे अपने बेटे दीपक की बहुत याद आ रही थी। मैं उसके कुक्कू की हिफाजत नहीं कर पाई थी। किसी तरह सुबह हुई , मैं नीचे उतर कर उसे ढूंढने गई ।आस पड़ोस में ढूंढा लेकिन वह  कहीं नहीं दिखा १०२ ननम्बर वाली मैडम कह रही थी - 'हां एक तोता सुबह इधर बैठा हुआ था, थोड़ी देर बाद एक दो तोते आ गए और वह उनके साथ उड़ गया। मैं उनसे कह कर आई हूँ यदि वह दुबारा उस पेड़ पर दिखेगा तो मुझे बताएंगी। 

वह किसी तरह थोड़ा बहुत काम करके चली गई। सुबह को  वह कह रही थी - मेरी मां कह रही -कुक्कू तुम्हारे बेटे  दीपक की निशानी था ।वह उसको लेकर आया था ।  तुमने उसको कैसे जाने दिया ? मैडम जी बताओ मैंने उसे कोई जानबूझकर थोड़ी ना जाने दिया ।

मैं शाम को पार्क में टहलने जाती हूं।थोड़ी देर के लिए उस दिन शाम को टहलने  के लिए निकली तो उसे परेशान घूमते हुए देखा।

मैंने पूछा - तुम कहां घूम रही हो ? 

वह बोली मैडम- जी कुक्कू को ढूंढ रही थी। कहां गया होगा मेरा कुक्कू ?उसे उड़ना भी नहीं आता है।

इस पर मैंने उससे कहा- " बच्चे अपने मां बाप को हमेशा छोटे ही लगते हैं"। तुम्हें लगता है कि उसको उड़ना नहीं आता है अगर उसको उड़ना नहीं आता तब वह जाता कैसे। इस पर वह कहने लगी कि उसे उसे खाना कहां मिलेगा बाहर? मैं उसको इतना अच्छा- अच्छा खाना देती थी।उसके लिए फल ले आती थी, हरी मिर्च,अमरूद और सेब क्या-क्या नहीं लाती थी। वह मुझसे पूछने लगी - मैडम जी आ जाएगा ना मेरा कुकू? मैं उसे क्या जवाब देती।

 तीन-चार दिन बाद मैं किचन में थी कि मुझे कुक्कू बाबू की आवाज सुनाई दी। यह कमला की आवाज थी।उसकी आवाज सुरीली थी । वह बड़े प्यार से आवाज लगा रही थी थी।


"आजा कुक्कू बाबू! आजा मेरा बेटा" !लेकिन  थोड़ी देर बाद आवाज आनी बंद हो गई । दूसरे दिन जब वह  काम पर आई तो कह रही है - मैडम जी आज मेरा कुक्कू आया था। 
मैंने पूछा- वो आया पिंजरे में ?

वह बोली -नहीं मैडम जी वह पेड़ पर ही बैठकर कुक्कू बाबू, कुक्कू बाबू कर रहा था । लेकिन आया नहीं, उसके साथ दो चार तोतिया भी थी , वह सब उसके आगे पीछे घूम रही थीं। वह कभी छत की मुंडेर पर आकर बैठता , तो कभी पेड़ पर जाकर बैठ जाता। मुझे लग रहा था, यदि   मैं उससे प्यार करती हूँ तो वह भी  मुझे जरूर प्यार करता होगा। मेरे पास आ जायेगा। मैंने रेलिंग पर खाना रखा था, उसने वह खाना तो खा लिया लेकिन खाना खा कर फिर पेड़ पर जा कर बैठ गया। कुछ देर बाद उन तोतियो के साथ उड़ गया। 

कहने लगी - उसके पति कह रहे थे कि जाने दे, '"अब तेरा कुक्कू बड़ा हो गया है "उसे  आजादी से घूम लेने दे।

मैंने उससे पूछा - तुमने अपने तोते को पहचान कैसे लिया? वहां तो ढेर सारे तोते होंगे।

इस पर वह बोली -"मेरे बेटे दीपक ने उसकी पीठ पर पेंट से निशान बनाया था"।

कुछ दिन बाद फिर वह सामान्य हो गई। लेकिन कभी-कभी मुझे कुक्कू बाबू की आवाज सुनाई देती और वह आकर कहती कि मैडम जी आज मेरा कुक्कू आया था ,रेलिंग पर रखा खाना खाया,जो मैं उसके लिए रोज रखती हूं। 
  इस बात को दो-तीन महीने हो चुके थे। 

एक दिन जब वह  काम पर आई तो कह रही थी -"मैडम जी आज हमने अपने कुक्कू को पकड़ लिया था "जब वह आया, हमने पिंजरे में खाना रखा था, उसने आकर खाना खाया। मेरे पति ने पिंजरे पर चादर डाल दिया और पिंजरे का दरवाजा बंद कर दिया। मैंने कहा- यह तो अच्छी बात है तुम्हारा कुक्कू तुमको मिल गया।

वह बोली- "मैडम जी हमने उसको छोड़ दिया" मैंने कहा - तुमने उसको छोड़ क्यों दिया? जब वह तुम्हें मिल गया था । तुम्हारे दीपक की निशानी था।

उसने कहा  -" मैडम जी हमने उसको एक  घंटे तक  रखा था। उसकेे आसपास ढेर सारे तोते  इकट्ठे हो गए और शोर मचाने लगे। कुक्कू पिंजरे के अंदर एकदम चुपचाप बैठा था। वह किसी से बोल नहीं रहा था न ही मेरी बात का जवाब नहीं दे रहा था। मैं कुक्कू बाबू बोल रही थी लेकिन वह उसका जवाब नहीं दे रहा था।"

मैंने कहा-

'हां पंछी आजादी पसंद करते हैं "। उनको बाहर कुछ भी ना मिले खाने को लेकिन आजाद आसमान में, खुले आसमान में आजादी के साथ उड़ना पसंद करते हैं प्रकृति उनका घर है उन्मुक्त  आकाश में विचरण करना ही उनकी प्राथमिकता होती है। पेड़ पौधे और डालियां यह सब इनके छोटे-छोटे नीड़ हैं। ये एक नीड़ से दूसरे नीड़ पर घूमते रहते हैं और खुश हो कर अपना जीवन व्यतीत करते हैं"।

तुम चाहे उन्हें सोने के पिंजरे में बंद कर दो,उनको सारे सुख दे दो,सारी चीजें लाकर दे दो लेकिन रहेंगे "पिंजरे  के कैदी"।मैंने उससे कहा - तुमने कुक्कू को पिंजरे में बंद कर दिया ,अब वह पेड़ पर भी नहीं आएगा। इस पर वह कहने लगी कि मैडम जी वह जरूर आएगा। वो भी मुझसे प्यार करता होगा। मैं उसके लिए खाना रखती हूं। वह पेड़ से आएगा ,खाना खाकर चला जाएगा।

कुछ दिन बाद मैंने उससे पूछा - "कमला क्या  तुम्हारा कुक्कू आया था किसी दिन"?

उसने उदास होकर कहा-"नहीं मैडम जी, उस दिन के बाद से मेरा  कुक्कू नहीं आया"।

मैंने उसको कहा-"अगर तुम उसको पिंजरे में बंद नहीं करती तो वह आता। कम से कम तुम उसको देख तो सकती। उसकी आंखों में आंसू थे।

🌸स्नेहलता  पाण्डेय "स्नेहिल"
🍁नई दिल्ली✍️✍️

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