एक समाधान ऐसा भी#डॉ. रेखा मंडलोई ' गंगा ' इन्दौर द्वारा खूबसूरत रचना# लघुकथा

"लघुकथा"
'एक समाधान ऐसा भी'
सुधा आज कुछ चहकते हुए रवि को अपने मन में उठने वाले विचारों से अवगत कराने को व्याकुल हो रही थी। रवि उस समय अपने विचारों में इस तरह डूबा हुआ था कि उसे यह आभास ही नहीं हुआ कि सुधा उसके पास आकार कुछ कह रही है। रवि विचारों के जाल में उलझता जा रहा था, उसे इस बात का डर था कि सुधा को हकीकत पता चलेगी तो वह सहन नहीं कर पाएंगी। असल में रवि ने अपने  एक मित्र की आवश्यकता पड़ने पर आर्थिक मदद उन पैसों से कर दी थी, जो उन्होंने बेटे की कॉलेज की फीस भरने के लिए रखे थे। अगले सप्ताह बेटे को कॉलेज भेजना था और इसी संदर्भ में सुधा रवि से बात करना चाहती थी। रवि का वह मित्र अभी पैसे लौटाने की स्थिति में नहीं था। रवि को समझ नहीं आ रहा था कि वो कहां से बात प्रारंभ करे। रवि की मनोदशा देखकर सुधा समझ गई कि रवि कोई गहरी मुसीबत में है। उसने मुस्कराते हुए अपने पति से कहा,आप अपनी परेशानी तो मुझे बताइए। रवि ने बड़ी हिम्मत करके सुधा को सारी बात बताई, सुधा मुस्कराते हुए बोली बस इतनी सी बात। आप चिन्ता बिलकुल मत कीजिए, मेरी एफडी की राशि बैंक में जमा हो चुकी है। हम उसमें से अभी बेटे की फीस जमा कर देंगे, जब आपका मित्र पैसे लौटाएगा उस समय हम फिर से एफ डी करवा देंगे। रवि को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी परेशानी का हल इतनी आसानी से मिल जाएगा। उसने लम्बी गहरी सांस लेते हुए सुधा का शुक्रिया अदा किया।
डॉ. रेखा मंडलोई ' गंगा ' इन्दौर

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ