निर्मल जैन 'नीर' जी द्वारा विषय बचपन पर अद्वितीय रचना#

बचपन.....
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जान
नहीं पाया
बचपन कैसे गुजरा
समझ नहीं
पाया
बहुत
कुछ खोया
किसी कोने में
छुपकर खूब
रोया
जाने
कब जागा
चैन की नींद
पता नहीं
सोया
देखे
थे सपने
गरीबी मार गई
नहीं हुए
अपने
बचपन
गुज़र गया
कोरा था कागज़
कोरा रह
गया
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निर्मल जैन 'नीर'
ऋषभदेव/उदयपुर
राजस्थान

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