*जिंदगी की सच्चाई*
दौर चल रहा ये अजीबोगरीब
मजे ले रहे हम जिंदगी के
उम्दा हमारे नसीब
सिमट गयी दुनिया
एकल परिवारों में
बातें रह गयी अब
संयुक्त परिवारो की
इस कलयुगी जमाने में
नयी पीढ़ी को आता नही रास
पुरानी पीढी का दखल देना
मानो या न मानो
मुश्किल ही इनको समझाना
किस - किस से कहे हम
हमारा दुखड़ा
हर घर में यही तो रोना
रिश्ते बनाती युवा पीढ़ी
सिर्फ दोस्ती, यारी में
इन्हें नही समझ इतनी
क्या अहमियत रखते बुजुर्ग
जिंदगी की कहानी में
आसामन को छूने के लिए
हौसले इनके बुलंद
जमीनी हकीकत से ये कोसो दूर
करते नही एतबार किसी पर भी
होते नही जल्दी से रज़ामंद
खूबसूरत दौर कहूंँ
या दूं इसे कोई दूजा नाम
यही आज की जिंदगी
पुराने-नये मिश्रण के साथ
जीना हमें इसी धरा पर
चाहे आये कोई भी परिणाम
सतीश लाखोटिया
नागपुर, महाराष्ट्र
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