श्रीमती देवन्ती देवी चंद्रवंशी जी द्वारा विषय कृष्ण की बाँसुरी#

कलम की ध्वनि से 
विषय==== *कृष्ण की बाॅसुरी* 
विधा======= *कविता*===
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जब बजाते हैं कृष्ण बाॅसुरी, मैं घर पर नहीं रह पाती हूॅ।
जब सुनती हूॅ बाॅसुरी की मधुर धुन मंत्रमुग्ध हो जाती हूॅ।।

ओ मनमोहना श्री कृष्णा काहे को  बाॅसुरीया  बजाते हो।
घर में मन नहीं लगती,पियाजी से तुम कलह करवाते हो।।

क्यों बाॅसुरी की धुन सुना कर मुझे जमुना तट बुलाते हो।
मन बावरी हो जाती है जब बाॅसुरी बजा कर बुलाते हो।।

जब भी जाती हूॅ मैं  पनियाॅ भरने सखी संग पनघट पे।
हर जगह दिखाई देते, बाॅसुरी की धुन आती है कानों में।।

बहुत देर हो गई कृष्ण,अब मत रोको नन्द लाल मुझे।
आऊॅगी मैं कल फिर मिलने, सच कहती हूॅ कृष्ण तुझे।

ना जाने क्या जादू है हे श्रीकृष्णा तुम्हारे बाॅसुरी में।
मैं प्रेम में ओत प्रोत हो जाती, क्या गुण है बाॅसुरी में।।

जब सुनती मैं बाॅसुरी की धुन, सुध अपनी खो देती हूॅ।
काॅटो भरी राहों में चलके,कृष्ण मैं मिलने आती हूॅ।।

बड़े नटखट हो हे श्रीकृष्ण, चैन से सोने भी नहीं देते
कैसे मिलने आऊॅगी रात में, पिया पैर बाॅध के रखते।।

श्रीकृष्ण की बाॅसुरी धुन सुन, तन मन में प्रेम उमड़ती है।
वैसा कोई क्षण नहीं है तुझे देखने नैना मेरी तरसती है।।
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     श्रीमती देवन्ती देवी चंद्रवंशी
            धनबाद झारखंड

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