शीर्षक घूंघट का पट खोल
विधा कविता
मीठी मीठी बानी तुम बोल रे
घट घट रमता राम रमैया
कटुक वचन मत बोल रे
घूंघट का पट खोल रे
तोहे श्याम मिलेंगे
देव दरश की दीप बरत है
आसन से मत बोल रे
मनकी द्वार खोल
तोहे राम मिलेंगे
कहे देव सुन भाई बहना
अनहद है बाजे ढोल रे
लोभ मोह तू तेज दे
मन कपाट खोल रे
देख बैठे हैं प्रभु
श्रीकृष्ण चारों ओर रे
मन का घूंघट खोल रे
श्रीमती देवन्ती देवी चंद्रवंशी
धनबाद झारखंड
अप्रकाशित स्वरचित कविता
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