कृष्ण कन्हैया सुनो"#अम्बिका झा जी द्वारा खूबसूरत रचना#

"कृष्ण कन्हैया सुनो"

मेरे कृष्ण कन्हैया सुन लो,
मैं अपनी व्यथा सुनाती हूं।
जो कष्ट मिला है मुझको वह,
अब सहन नहीं कर पाती हूं।।

मेरे  बच्चे जिन अन्नों को
हल से अब भी उपजाते है,
बैलों ‌की जोड़ी गायव है,
और ट्रेक्टर आज़ चलाते हैं।।

खाने को मेरे अन्न नहीं, 
न रहने को गौशाला है।
मानव मुझको मां कहता है, 
फिर भी कष्टों में डाला है।।

गौ रक्षा के आड़ में मानव
कितने व्यापार चलाते हैं।।
खेतों में गर चरने जाऊं,
डंडे से पिटवाते है।।

तन से मेरे रक्त टपकता,
रोम रोम चिल्लाते हैं।
चोट मेरे जब दिल पर पड़ते
नयना नीर बहाते हैं।।

आकर आज धरा पर देखो
गैया पन्नी गटक रही है।
ना खेत है चरने को मेरे ,
वन वन जा भटक रही है।।

ना खेतों में चारा मिलता ,
ना वन में  ही हरियाली है।
ना घर में रखता कोई आज,
ना ही कोई रखवाली है।।

गौशाला बनी अनेकों  पर,
मानव व्यापार चलाते हैं।।
मेरी चोट पर मरहम लगा,
बस फोटो वो खिंचवाते हैं।।

लाखों का दान लिया जाता,
फिर भी मैं भूखी मरती हूं।
जिनको मैं दूध पिलाती हूं,
अब मैं उनसे ही डरती हूं।।

जब तक दुध दही मैं देती
घर में मुझको रखतें हैं।।
नहीं काम की जब मैं रहती
मुझको बाहर करते हैं।।"

मानवता को भूल आज,
मानव ना तनिक लजाते हैं।
जो मेरे बेटे बनते हैं,
वो मुझे मार कर खाते हैं।।

हे बंशीधर अब सुध ले लो,
तुम आकर अपनी गैया की।
क्यों बूचड़ खाने पाल रही,
यह भूमी कृष्ण कन्हैया की।।"

प्रतिलिपि परिवार के सभी सदस्यों को गोवर्धन पूजा की बहुत-बहुत शुभकामनाएं 🌹

अम्बिका झा ✍️
कांदिवली महाराष्ट्र

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