हलाला प्रथा हटाओ।#प्रकाश कुमार मधुबनी का हलाला पर कटाक्ष करते हुए रचना#

हलाला प्रथा हटाओं।
अपने इज्जत को
क्यों नीलाम कर रहे
दिन दहाड़े बाज़ार में
हाँ धर्म के आड़ में।

हवस के व्यापारी को
मजहब के ठेकेदारी को
बंद करो जेल के दीवार में
जो कर रहे धर्म के आड़ में।

इनके चश्में को हटाकर
इनका खेल बर्बाद करो।
बगिया बंजर होने से पूर्व 
आओ फिर आबाद करो।

मानवता के चश्मे से देखो।
न डुबो घोर अहंकार में।
अब भी जारी है ख़ूनी खेल
दिखाई दे रहा इनके विचार में।

यह कैसे हो सकता है
की आजाद देश में भी
आजादी छीन लिया जाता है।
सिसकती रहती है बेटियां व
मौलीवी को छोड़ दिया जाता है।


आओ जागों हिन्द के लोगों
पाखण्डियों को सजा दो।
इससे पहले की नोच खाएं बेटियों को
इनके झूठे धर्म का पर्दा हटा दो।


हलाला के नाम पर कब तक
अपना हवस मिटाओगे।
अरे जब पूछेगा अल्लाह 
 तुम कैसे मुँह दिखाओगे।

चाहे सलमा हो या राधा हो 
पहले की हिन्द की नारी है।
इन लिए कुरीतियों को हटाओ।
ये बराबर जीने की अधिकारी है।

धर्म कोई नही बताता अपनी
बगिया स्वयं उजाड़ने को।
जरूरत है तो जड़ समेत ऐसे
 अधर्मियों को जड़ से उखाड़ने को।

यदि ऐसा न हो सका तो फिर
से कोई रजिया गिरगिड़ायेगी रोएगी।
सोचों रे नपुंसकता वादी कैसे फिर
बेटी अपने घर में चैन से सोएगी।

जागो जागो हे वर्तमान के यौद्धा
अपना अस्तित्व को बचा लो।
कही वशून्धरा न काली बन जाएं
जागों अब भी नकाब हटा लो।

आओ कसम खाओ कोई 
हलाला भारत में न होने पाएं।
कोई ऐसा मौलीवी पैदा न हो।
जो बहू बेटी को नोच खाएं।


प्रकाश कुमार मधुबनी'चंदन'



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