*एन सी एफ 2005*
*स्वरचित रचना*
महान रविन्द्र नाथ टैगोर नाम हुआ उनका, रच दिया इतिहास।
जिससे हुआ राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 का आगाज।
इस पाठ्यचर्या के आने से पहले,बच्चों को रटाया जाता था।
मास्टर साहब के मन मुताबिक बच्चों को पढ़ाया जाता था।
इस पाठ्यचर्या के आने के बाद से बदल गया शिक्षा का ढंग।
बदलाव के लिए दिया गया शिक्षा के मूल अधिकार का प्रसंग।
पाठ्यचर्या के मुताबिक बच्चों को रटाया नही, सिखाया जाएं।
कक्षा में बच्चों के केंद्रीय बिन्दु रखकर ही उन्हें पढाया जाएं।
कक्षा में 1:30 से अधिक न हो शिक्षक व विद्यार्थी का अनुपात।
शिक्षा कोई बोझ नही आनंद है, हो दोनों की भागीदारी व साथ।
कहा किताबी ज्ञान को बाहर के ज्ञान से जोड़ा जाना चाहिए।
बच्चों के किताबों को उनके आयु वर्ग में बांटा जाना चाहिए।
नही सहना पड़ेगा अब से विद्यार्थी को भारी बस्ते का बोझ।
शिक्षक केवल मददगार होगा अब विद्यार्थी स्वयं करेंगे खोज।
लिंग भेदभाव जाती पाती से ऊपर उठ के हो एकसमान शिक्षा।
हर बच्चों के अंदर कौशल है,तरासने को मिलेगी ऐसी दीक्षा।
विद्यालय में गैर शिक्षण गतिविधियों पर भी देना होगा ध्यान।
क्योंकि इससे मिलेगा हर जन जन को नव ऊर्जा व पहचान।
इसी तरह से शिक्षा के संग होगा उनके नैतिकता का विकास।
यह आसान नही इसके लिए करना होगा सतत नए प्रयास।
बच्चों के षुरूआती शिक्षा को क्षेत्रीय भाषा में ही दिया जाए।
इससे बेहतर सीखेंगे की कैसे अपने पर्यावरण संग जिया जाए।
गणित पढ़ाते समय ज्यादा से ज्यादा दैनिक उदाहरण बताओ।
इससे गणित आसान होगी चलो उन्हें समझ के पढ़ना सिखाओ।
पढाई संग गढ़ना है उन्हें तभी होगा समर्थ नागरिक का निमार्ण।
जब समावेशी शिक्षा का विस्तार होगा बनेगा अपना देश महान।
प्रकाश कुमार मधुबनी'चंदन'
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