स्वरचित रचना
*स्वयं के भीतर*
अपने आप में झाँको।
केवल बाहर से न आंको।
नए ढंग से नया सवेरा।
नए रूप में नया बसेरा।
चलो उठो मौन न बैठो
स्वयं अंदर अंदर ताको।
सयंम से आत्मसात होकर।
योग का सूक्ष्म बीज बोकर।
चलो ज्ञान का पट खोलो।
होगा चलो स्वयं से बोलो।
जब ऐसा तुम कर पाओगे।
शून्य में जाकर अनन्त पाओगे।
बहुत महत्वपूर्ण है एकांत
इससे पहले की हो देहांत।
इसलिए करो जतन मनन
होगा अपूर्णता में पूर्णता।
बुद्धि का जब द्वार खुलेगा।
तब बन्द विचार खुलेगा।
उस दिन जीत पाओगे
जब यथार्थ जान जाओगे।
प्रकाश कुमार मधुबनी'चंदन'
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