सावन की बदरा

बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता                    

विषय- सावन में लग गई आग                     
  विधा- कविता (हास्य)                                दिनांक-16/06/2020                                                                  
दिन- मंगलवार

शीर्षक- सावन की बदरा।   

बरखा बदरा
झूम उठी सावन
बड़की भौजी गाने लगी 
अब गीत सुहावन।

मंगरूवा भी नहाएगा,
 सावन की बदरा से
आख़िर कब तक बच पाएगा,
बड़की भौजी अब झूम रही 
चलो इस साल का मैल तो धूल जाएगा।

मंगरूवा होत परेशान है
कभी मन मे: तो कभी तीखे 
स्वर में बोलत उबान है।

बड़की भौजी के हाथों का
  लिट्टी चोखा महकेगा
बारिश की बूंदों में 
मंगरूवा का भी दिल धड़केगा।

आग लगी हरियाली को
सावन फिर हरा कर जाएगा
नाग पंचमी पर मंगरूवा खूब ढोल बजायेगा,
ये सावन सबको खुशियों की सौगात दे जाएगा।।


         रितेश कुमार
पश्चमी चम्पारण ( बिहार)

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3 टिप्पणियाँ

  1. वाह जी गजब क्या बात है... आपके कविता को पढ़ के मंगरुवा क्या कोई भी झूम उठेगा.....शानदार प्रसतुती

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  2. Bahoot adbhut likha hai... Ese hi likhte rahie or hame bhi iska anand dijie...

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  3. ये किस उम्र की भागमभाग
    अरमानों का होंठो पर राग

    सुनो सावन में लग गई आग ये किसने रास रचाया
    होओ ,होओ ,होओ
    चंचल मन हैं मेरा लुका -छिपी में बड़ा मजा आया
    होओ, होओ, होओ


    देख पड़ौसन द्वार पे तूने मिलने को पास बुलाया
    दीदार देकर तूने अँखियों की मेरी प्यास बढ़ाया
    ओ दीवानी ओ दीवानी कुछ तो बोल तू दर खोल
    सुनो सावन में लग गई आग ये किसने रास रचाया।
    होओ, होओ,होओ

    आग लगाके तन-मन में तूने ऐसे मुखड़ा छिपाया
    मिलन का बहाना बना के तूने मन का राग सुनाया
    मैं हूँ तेरा,मैं हूँ तेरा दीवाना खोल ना तू कोई पोल
    सुनो सावन में लग गई आग ये किसने रास रचाया।
    होओ,होओ,होओ

    चेन कही भी देखो दोनों ने फिर भी तो नहीं पाया
    मेरी हसरत जगा के मजा जरा उसको भी आया
    मैं राही अलबेला,प्यासा भी तेरा ही हूँ अब बोल
    सुनो सावन में लग गई आग ये किसने रास रचाया।
    होओ,होओ,होओ

    सुबह बुलाया ना पड़ौसन ने शाम को भी ना बुलाया
    जलवा, जलवा उसका जान जलाए और ज्यादा
    ये क्या माजरा हैं "नीतू" तेरा नहीं हैं कोई भी रोल
    सुनो सावन में लग गई आग ये किसने रास रचाया।
    होओ,होओ,होओ

    नीतू राठौर भोपाल से

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