सावन में लग गई आग

बदललाव मंच साहित्यिक प्रतियोगिता"सावन में लग ग ई आग " विधा -हास्य कविता 
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16जून दिन-मंगलवार
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सावन में लग ग ई आग सत्य विचलीत  हुए भोर की तलाश कर रहा है ,त्याग और राग निज स्वार्थ में उन्नती की आश कर रहा है  ।
सावन का महीना था ,रिमझीम बारीस हो रही थी कि -
एक अजीब नवजान ब्यक्ति एक रोज अचानक मेरे घर पर आया बहुत जोरो से दरवाजा खटखटाय मै कुछ लिख रहा था कुछ सिख रहा था पर छोड़कर फौरन आया दरवाजा खोला और बोला क्यों भाई क्या बात है?
उसने रुआसा आवाज मे कहा हमारी हालत देख लीजिये  सुना है आप कवि है अच्छा खासा कमा लेते है दानी सवभाव के दयालु व्यक्ति है जो मांगने आता है उसे कुछ न कुछ अवश्य देते है मेरी बातो मे कोई त्रुटि हो तो उसे माफ कीजिये साहब कम से कम मुझे एक सौ रूपये दीजिये मैंने कहा पैसा किस काम मे लगाओगे कैसे और कब तक हमारे पैसे लौटाओगे वह बड़े ही दृढ़ स्वर मे बोला साहब ! पैसा से शराब पियूँगा, मांस खाऊंगा किसी की जेब काट कर आप के पैसे किसी न किसी दिन अवश्य लौटा जाऊंगा मै कभी झूठ नहीं  बोलता, साहब सत्यवादी हूँ बुरा ना मानियेगा, माई बाप पाकिट मारी और सराब का आदि हूँ |
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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम-बड़का खुटहाँ ,पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा )
जिला-गोपालगंज ((बिहार )
मो0नं0-9572105032

On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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